Saturday, January 1, 2011

मन को वश में कैसे करें?


मन को वश में कैसे करें?
           यह एक आम शिकायत है कि मन कहना नहीं मानता । वह अपनी ही मर्जी चलाता रहता है । यह शिकायत गलत नहीं है, ऐसा होता है । पर यह भी सही है कि अगर वास्तव में ही मन को वश में करना चाहते हैं, तो उसके लिए भी उपाय हैं । कम से कम काम के वक्त वह इधर-उधर भागदौड़ न करके अपना साथ दे, अनावश्यक तंग न करे, इसके लिए कई तरीके अपनाए जा सकते हैं और मन को पूर्ण रूप से न सही तो अधिकांश रूप से अपने काम में लगाया जा सकता है और उसे बेहतरीन ढंग से सम्पन्न किया जा सकता है । उदाहरण स्वरूप एक तरीका है- 'मन के साथ मैत्री स्थापित करना ।'
           जिस तरह एक मित्र के साथ हँसा बोला जाता है, रूठ जाए तो उसे मनाया जाता है, प्रसन्न करने के लिए उसे खिलाया-पीलाया जाता, मनोरम स्थानों पर घुमाया-फिराया जाता है, उसी तरह मन के साथ भी किया जा सकता है । वह इधर-उधर भागे तो वहाँ से लौटा लाकर उसे नयी दिशा में लगाया जा सकता है । रूठे हुए बच्चों को मनाने की तरह उसे मनाकर, अच्छे कामों की फायदा जताकर उसे फुसलाया जा सकता है । मित्र से सलाह लेने की तरह उससे सलाह-मशबिरा किया जा सकता है, जैसे अमुक काम को किस तरह से किया जाना चाहिए? अमुक गुत्थी को किस तरह सुलझाना चाहिए? वह युक्ति देगा इस तरह या उस तरह; पर हम अपने तर्कों से, युक्तियों से, उपयोगिताओं के विभिन्न पक्षों की उपस्थापना करके उसे समझा सकते हैं । कभी-कभी दृढ़ता भी अपनायी जा सकती है । इन सबमें विवेक की प्रमुख भूमिका रहेगी । वैसे हर युक्ति, हर तरीके के अपनाने में विवेक की प्रभुता रहनी चाहिए । हर निर्णय के लिए आत्मिक दृढ़ता अनिवार्य है । अन्यथा मन अपनी मर्जी का करा लेगा और पुराना ढर्रा फिर से चालू हो जाएगा ।
           खासकरके मन एक चञ्चल और हठी बच्चे की तरह होता है । वह हर वक्त कुछ नया देखने, चखने व उपभोग करने के फिराक में रहता है, इसीलिए इधर-उधर उछलकूद करता रहता है । इसके लिए उसे बार-बार समझाना कि बेटा, उसे तो बहुत देख लिया, चख लिया; अब इसका स्वाद भी एक बार लेकर देख, इस तरह अच्छाइयोंे के लाभों का प्रलोभन देना, उसके हठपन को बार-बार दृढ़ता के साथ अपने अनुकूलता की ओर मोड़ना कि क्या यार, तू अपना ही चलायेगा क्या? हमारा नहीं सुनेगा? हम तेरा बहुत मान लिया, अब तू अपना भी मानकर देख ले एक बार, अब हम नहीं सुनेंगे-नहीं सुनेंगे, हम तो चले अपनी राह पर, इस तरह कहकर उसकी ओर बिना ध्यान दिये अपना ही कुछ शुरू कर दिये, यथा-
           'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि' वह वरणयोग्य सविता के दिव्य तेज को तो देख, कितना अलौकिक है वह, अरे मन! तू उसका ध्यान कर, उसे अपने अन्दर धारण कर । तत्सवितु-वह सविता, वरेण्य सविता, दिव्य सविता, तेजवान सविता, ध्यानयोग्य सविता, धारण योग्य सविता-तेज, तू उसे धारण करके देख, कैसा मजा आता है । इस तरह मन को बहला-फुसलाकर उस ओर प्रवृत्त करने का प्रयास करना चाहिए । बारम्बार के प्रयतन से धीरे-धीरे वह निश्चय ही मानने लगेगा ।
           कहते हैं- 'रस्सी की रगड़ खा के घिस जावै शिला, अभ्यासेन सर्वसिद्धि मनहि का बला?' जब मुलायम सी रस्सी का रगड़ खाकर अत्यन्त कठोरतम पत्थर भी घिस जाता है, तो धैर्य और विवेक के साथ बार-बार प्रयतन करने पर भी मन वश में न आए, ऐसा कैसे हो सकता है?
           भूलाना चाहें तो कुछ भी भुलाया जा सकता है और याद रखना चाहें तो चौबीसों घण्टे याद रखा जा सकता है । यह तो अपनी इच्छा पर निर्भर है कि किसे दिमाग से निकाला जाए और किसे दिल में बसाया जाए । इस इच्छाशक्ति का प्रयोग अपने मन पर भी किया जा सकता है ।
           वैसे उसकी प्रवृत्ति प्रायः पतन की ओर उन्मुख होती देखी गई है । वह अधिकतर गिरने-गिराने वाले कामों में रस लेता है । उठने-उठाने वाले कार्यों की ओर मुश्किल से प्रवृत्त होता है । ऐसे कार्यों के लिए उसे पीछे से धक्कापेल करना पड़ता है । शायद अच्छे कार्यों में उसे खतरा मालूम होता है, इसलिए दूर भागता है । यह आम बात भी है कि खतरों से सभी डरते हैं । फिर मन ही क्यों मूर्ख बने? हरि भजन में उसके अस्तित्व को खतरा है । कारिख-मज्ज्ान में उसके लिए उत्सव है । और यह भी आम बात है कि उत्सव सबको प्रिय है । वह क्यों उत्सव न मनाए? तो उपाय क्या है?
           कोठरी कारी नहीं ये मन करे काला । धैर्य विवेक अभ्यासे धुले मन मैला॥
           बार-बार का अभ्यास ही वह उपाय है जिससे मन को वश में किया जा सकता है । वैसे योग महाविज्ञान के कई गूढ़, प्रभावकारी आर्षानुभूत प्रयोग हैं, यथा-आसन, प्राणायाम, बन्ध, मुद्रा, ध्यान, त्राटक, मन्त्रानुष्ठान आदि; पर ये सब विशेषज्ञों से सीखकर व्यवहार में लाने योग्य प्रयोग हैं । इनमें प्राणायाम और त्राटक बहुत ही प्रभावशाली प्रयोग हैं । प्राणायाम मन की चञ्चल वृत्ति का शमन कर उसमें गम्भीरता लाने, हठधर्मिता को बदलकर समझौते की रीति-नीति के अभ्यस्त बनने एवं उसे सूक्ष्म, शान्त, सात्त्विक, ऊर्जावान बनाने की भूमिका अदा करता है तो त्राटक बिखराव समेटकर केन्द्रीभूत होने, नियोजित दिशा की ओर प्रवृत्त होने में अच्छा सहयोगी बनता है । त्राटक सहज सरल यौगिक प्रयोग है, पर उसका लाभ अलौकिक है । मन को अनुकूल बनाने में उससे सरल व प्रभावशाली प्रयोग शायद ही कोई हो ।
           खैर, उर्पयुक्त प्रयोगों का उपयोग भी अनुभवियों से सीखकर किया जा सकता है और मन की अलौकिक शक्तियों के लाभों से लाभान्वित हुआ जा सकता है । डूबाने वाला मन है, उबारने वाला मन है; मन का मैल धुल जाए तो वही अमनचैन है ।
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_धीरेन्द्र