Wednesday, September 15, 2010

साँचा

कोई दिल बदलते तो कोई दल बदलते हैं ।
व्यर्थ ही दिल-दल के दलदल में उलझते हैं ।
बदलते-बदलते बदलने वाले बदल जाते हैं,
पर जो बदलने चाहिए, बिनबदले रह जाते हैं ।
अरे बदलने वालो! वह साँचा तो बनाओ, जिसमें-
बदलाव भी बदलता, बदलने वाले भी बदलते हैं ।
                                                 - धीरेन्द्र

No comments:

Post a Comment